एक मुद्रा-विहीन या मुद्रा रहित अर्थव्यवस्था (Cashless Economy) का तात्पर्य
ऐसी अर्थव्यवस्था से है, जहाँ मुद्रा का इस्तेमाल नहीं होता है या न्यूनतम
होता है। एक मुद्रा-विहीन अर्थव्यवस्था में मुद्रा की जगह डिजिटल पैसे का
इस्तेमाल किया जाता है, तथा लेनदेन व भुगतान डिजिटल यंत्रो जैसे की मोबाइल,
एटीएम आदि द्वारा किया जाता है।

मुद्रा-विहीन अर्थव्यवस्था प्राचीन समय में भी चलन में थी। तब यह वस्तु विनिमय
प्रणाली पर आधारित हुआ करता था, जिसे बार्टर प्रणाली के नाम से जाना जाता था।
“बिटकोइन (Bitcoin) “ के आने से मुद्रा-विहीन अर्थव्यवस्थाओं को और अधिक बल
मिला।

हाल ही में भारत सरकार के विमुद्रीकरण के फैसले ने भारत में मुद्रा के महत्त्व
को लेकर कुछ सवाल पैदा किये है। और डिजिटल पैसे को एक समाधान के रूप में देखा
गया है।

भारत सरकार भी मुद्रा-विहीन भुगतानों को प्रोत्साहन दे रही है। और आखिर के कुछ
सालो में सरकार ने कुछ योजनाओं के तहत ई- भुगतान तथा डिजिटल भुगतानों को बढ़ावा
दिया है। भारतीय सरकार की मुद्रा-विहीन अर्थव्यवस्था के लिए किये गए प्रयास
निम्लिखित है:

1. जनधन योजना , आधार तथा मोबाइल :
भारत सरकार द्वारा शुरू की गई योजनायें जनधन से ले कर जनधन मोबाइल तथा अन्य
 पहलों जैसे की मुद्रा बैंक (Micro Units Development & Refinance Agency
Ltd-MUDRA) का एक उद्देश्य मुद्रा-विहीन अर्थव्यवस्था भी रहा है।

आधार कार्ड सरकार और जनता के बीच एक महत्वपूर्ण  संपर्क है। इसकी वजह  से जनता
को भ्रष्ट अधिकारिक चीजों से ज्यादा मतलब नहीं रहेगा, और वो बिना किसी रुकावट
के अपना काम कर सकेंगे।

अंतर्राष्ट्रीय कम्पनी मूडी की एक रिपोर्ट ने यह दिखाया है कि डिजिटल भुगतान
से उभरती  अर्थव्यवस्थाओ को 0.8% फायदा होगा जबकि यह विकसित अर्थव्यवस्थाओ के
लिए 0.3% है।

डिजिटल लेनदेन का एक फायदा यह भी है की यह आसानी से नजर रखी जा सकती है। साडी
लेन-देन की प्रक्रिया सही और सुनिश्चित ढंग से होगी|

मुद्रा-विहीन अर्थव्यवस्था के ओर बढ़ने के अन्य भी कई उपकरण है जैसे कि Unified
Payments Interface (UIP), एटीऍम, Aadhaar-enabled payment system (AEPS ),
Unstructured Supplementary Service Data (USSD) पर आधारित मोबाइल बैंकिंग तथा
ई-बटुवा आदि।

2. ऑनलाइन भुगतान को बढ़ावा
करेंसी नोटों के विमुद्रीकरण, भारतीय अर्थव्यवस्था को मुद्रा-विहीन
अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने पर सहायक साबित होंगे। विमुद्रीकरण के घोषणा के तीन
मुख्य प्रभाव होंगे । पहला , डिजिटल भुगतान में  घातीय वृर्द्धि होगी। दूसरा,
वे ई- वाणिज्यिक  लेनदेन  जो सुपुर्दगी पर अदायगी के माध्यम से होते थे  उनमें
भारी गिरावट आयेगी । तीसरा, क्रेडिट कार्ड्स के संख्या में बढ़ोत्तरी होगी।

पहले आयकर विभाग के विनियमन  के अनुसार  क्रेडिट कार्ड से एक साल में २ लाख
रुपयों से ऊपर के लेन-देन  की समीक्षा देना जरूरी था, और ग्राहक डिजिटल भुगतान
करने के लिए अनिच्छुक थे। अब यह २ लाख की सीमा आगे बढ़ाई जायेगी। भारतीय भुगतान
परिषद् ने एक  बयान जारी  किया जिसमे ये कहा गया कि डिजिटल भुगतान की  कुल
विकास दर अलग अलग उद्पादों में  40-70% तक रही है। डेबिट कार्ड की विकास दर
40% , क्रेडिट कार्ड की विकास दर 15-20% है। परन्तु इसके साथ साथ कुल भुगतान
में मुद्रा द्वारा किये गए भुगतान में भी वृद्धी हुयी है।

अभी यह मुद्रा-विहीन अर्थव्यवस्था के एक नए दौर की शुरुवात है  और मुद्रविहीन
उद्योग की विकास दर आने वाले 2 सालो में 100% रहने की उम्मीद है। भारत की
अर्थव्यवस्था के लिए यह मुद्र्विहीन दिशा में बढ़ने के लिए एक सकारात्मक सूचक
है।

3. डिजिटल भारत का विचार
जैसा की हमें ज्ञात है, भारत की 70 फीसदी आबादी  ग्रामीण प्रष्ठभूमि में रहती
है।  इसीलिए ग्रामीण इलाको में भी  आवश्यक डिजिटल आधारित संरचना का विकास करना
 सरकार के लिए मुख्य चुनौती है। भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को डिजिटल करने का
काम पहले ही शुरू कर दिया है।
ग्रामीण इलाको में मोबाइल  इन्टरनेट की पहुँच भी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि
बिक्री के बिंदु (PoS-Point of sale) पर भुगतान केवल मोबाइल इन्टरनेट के
द्वारा काम करता है। और डिजिटल लेनदेन के लिए लोगो को शिक्षित करना भी बेहद
जरूरी है क्योंकि बिना इस बात को जाने  इसका इस्तेमाल करना असंभव ही होगा।
यह कहा जा सकता है कि  जब तक ग्रामीण क्षेत्रो के स्थानीय  किराने की दूकान तक
ऑनलाइन भुगतान की सुविधा नहीं पहुच जाती तब तक मुद्रा से मुद्रविहीन
अर्थव्यवस्था का लक्ष्य पूरा नहीं हो सकता।

4. वित्तीय सुरक्षा
डिजिटल भुगतानों की वित्तीय सुरक्षा मूद्राविहीन अर्थव्यवस्था के लिए एक
महत्वपूर्ण मसला है। हाल ही में साइबर हमलावरों द्वारा लाखो डेबिट कार्डो से
डाटा चोरी की घटना ने  भारत  के वितीय सस्थानो की सुरक्षा पर सवाल खड़े किये
थे। और यह भी एक वजह रही है कि लोग डिजिटल भुगतान की जहग मुद्रा से भुगतान
करने को ले के ज्यादा सहज है। तो मुद्राविहीन अर्थव्यवस्था के लिए वित्तीय
संस्थानों की डिजिटल सुरक्षा बेहद जरूरी पहलू है।

5. अन्य मुद्राविहीन अर्थव्यवस्था वाले राष्ट्रों से सीख
भारत पहले से मुद्राविहीन देशो के माडलों  पर विचार कर सकता है। उरुग्वे ने
व्यवसाइयों को  डिजिटल भुगतान का इस्तेमाल करने को प्रोत्साहित किया । तो
 भारत भी डिजिटल भुगतान पर व्यवसाइयों को थोड़ी छूट दे सकता है। एक अन्य उदाहरण
स्वीडन का भी है। पूर्णरूप से मुद्रविहीन अर्थव्यवस्था होने के बावजूद स्वीडन
में अब भी 20% लेनदेन मुद्रा से ही होता है।

6. वितीय समावेश
भारत में अब भी कम आय वाले तथा गरीब लोगो की संख्या बहुत ज्यादा है। जो किसी
भी तरह की वितीय सेवाओं  से वंचित है। समाज के इस बड़े तबके का जब तक वित्तीय
समावेश नहीं हो जाता तब तक मुद्रा-विहीन अर्थव्यवस्था का लक्ष्य प्राप्त नहीं
हो सकता। इसीलिए वित्तीय समावेश मुद्राविहीन अर्थव्यवस्था के लिए बहुत
महत्वपूर्ण है। और भारत सरकार ने इस दिशा में भी कई कदम उठाये है।

इस्लामिक बैंकिंग और भारत में इसकी सार्थकता



मुद्रा-विहीन भविष्य की ओर सात कदम:
1. 3 लाख से ऊपर के मुद्रा आधारित लेनदेन पर बैन लगाना।
2. इलेक्ट्रॉनिक लेनदेन को प्रोत्साहन देना।
3. डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर स्कीम का कानूनी समर्थन देना।
4. 2 लाख से ऊपर के मुद्रा आधारित लेनदेन पर 1% कर लगाना।
5. 2 लाख से ऊपर के लेनदेन के लिए PAN कार्ड के इस्तेमाल को आवश्यक करना।
6. तत्काल भुगतान सेवा तथा आधार कार्ड के द्वारा भुगतान को लागू करना।
7. भारत बिल सिस्टम के तहत बिजली तथा अन्य बिलों  लिए एक वेबसाइट को तैयार
करना।


मुद्रारहित अर्थव्यवस्था की चुनौतियाँ:

भारतीय अर्थव्यवस्था मुद्रा से ही चलती आ रही है। 5% से कम भुगतान डिजिटल
माध्यम से होते है। यह इसीलिए होता है क्योकि समाज के बहुत बड़े तबके के लोग इन
बैंकिंग सुविधाओं से अब भी वंचित  इसीलिए मुद्रा ही उनके पास एक मात्र साधन
है। जो लोग डिजिटल भुगतान कर सकते है वो भी मुद्रा का इस्तेमाल करते है। अब हम
उन कारणों पर चर्चा करेंगे जो यथास्तिथि को समझने तथा मुद्राविहीन
अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह भारत की अर्थव्यवस्था
का विस्तृत परिदृश्य प्रस्तुत करेगा जो मुद्राविहीन अर्थव्यवस्था की संभावनो
को देखने और समझने का और अधिक स्पष्ट दृष्टिकोण बनाने में मदद करेगा।

1. कार्ड और POS
आरबीआई ने जुलाई 2016 में स्पष्ट किया कि बैंको ने रद्द कार्ड्स को हटा कर
के,25.9 मिलियन क्रेडिट कार्ड्स तथा 697.2 मिलियन डेबिट कार्ड्स वितरित किये।
यह कार्ड्स की संख्या काफी बड़ी है। परन्तु केवल कार्ड्स किसी अर्थव्यवस्था को
मुद्रविहीन अर्थव्यवस्था में नहीं बदल सकते। और वितरित कार्डो की संख्या और
जिनको कार्ड मिले उन लोगो के संख्या में समानता नहीं है। लोगो की संख्या जिनके
पास कार्ड है वह कार्ड्स की संख्या से कम है। और अधिकतर कार्ड्स शहरी क्षेत्रो
में आवंटित हुए है। जहा एक इंसान के पास 3-4 कार्ड्स है।और ग्रामीण इलाको में
कार्ड्स की संख्या काफी कम है। और कार्ड्स का इस्तेमाल केवल तीन कार्यो के लिए
किया जाता है। वो ऑनलाइन भुगतान , एटीऍम से पैसे निकलना व भेजना , बिक्री
केन्द्रों  जैसे दूकान, पेट्रोल पम्प आदि पर भुगतान के लिए इस्तेमाल।
आरबीआई का एक और डाटा यह दिखता है कि  जुलाई 2016 तक कुल मिला के विभिन्न
स्थानों में 1.44 मिलियन POS टर्मिनल स्थापित गए।इनमे से 1.16 मिलियन POS
टर्मिनल Bank, SBI, ICICI Bank, HDFC Bank, और  Corporation Bank के है। इन
पांच बैंको में से 4 बैंक मुख रूप से शहरी बैंक है।
2. ए टी एम
भारत की जनसँख्या लगभग 1.2 बिलियन है। और अभी भारत में लगभग 2.12 लाख एटीएम
मशीन तथा  1.3 मिलियन  POS कार्ड मशीन है। लोग डिजिटल भुगतान की ओर जाना चाह
सकते है परन्तु बहुत जगह इन्टरनेट की कमी तथा अनियंत्रित बिजली के आवंटन से
समस्या पैदा होती है। इस कमी को दुरुस्त करने से मुद्रविहीन अर्थव्यस्था की ओर
बढ़ने में बहुत सहायता मिलेगी।
3. मोबाइल
मोबाइल के द्वारा भुगतान करना एक रोचक चीज हो सकती है परन्तु इसके लिए
इन्टरनेट की जरूरत होती है।  जुलाई 2016 में भारत में  881 मिलियन भुगतान
डेबिट कार्ड्स, एटीएम , तथा POS टर्मिनल के माध्यम से हुए। इनमे से 85% लेनदेन
एटीएम से पैसे निकालने में किया गया। कुल मिला के 92% लेनदेन एटीएम के द्वारा
हुवा। इससे यह तथ्य सामने आता है कि भारत में डेबिट कार्ड का इस्तेमाल खरीदारी
करने से ज्यादा एटीएम से पैसे निकलने के लिए किया जाता है। अकेले उत्तर प्रदेश
में लगभग 150,000 से 200,000 टेलिकॉम रिचार्ज काउंटर है।परन्तु भारत की
जनसँख्या को ध्यान में रखते हुए POS की संख्या, टेलिकॉम रिचार्ज  काउंटर की
संख्या काफी कम है।
4. इन्टरनेट:
वर्तमान में 100 में से केवल 13 भारतीय नागरिको के पास इन्टरनेट सुविधा है। और
ग्रामीण इलाको में इन्टरनेट की गुणवत्ता उतनी अच्छी नहीं है। इसीलिए ग्रामीण
क्षेत्रो को मुद्रविहीनअर्थव्यवस्था से जोड़ने के लिए एक विश्वसनीय इन्टरनेट
नेटवर्क की जरूरत होगी।
5. कुछ अन्य रिपोर्ट :
ए टी कीर्नारी के उपभोक्ता व्यवहार पर किये  गए एक सर्वे के अनुसार  शौपिंग
माल में लगभग 90% लेनदेन मुद्रा के द्वारा किया गया। और ई- शौपिंग कंपनिया
अपना उपभोक्ता दायरा बढाने के लिए ‘सुपुर्दगी पर नकद अदायगी’ के विकल्प का
इस्तेमाल करती है। हालांकि सुपुर्दगी पर नकद अदायगी’ का इस्तेमाल करने वाले
लोगो की संख्या में कमी आयी है फिर भी यह कुल लेनदेन का 60% है।

गूगल  तथा बोस्टन कन्सल्टिंग ग्रुप द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट के अनुसार
 भारत में कुल 75% लेनदेन मुद्रा पर आधारित था जबकि विकसित देश जैसे कि
अमेरिका,जापान, जर्मनी , फ्रांस आदि में यह केवल 20 से 25% था। और हाल में
सरकार विमुद्रीकरण के निर्णय के बाद से मोबाइल बैंकिंग का इस्तेमाल करने वाली
कंपनियों में चार गुना बढ़ोत्तरी हुयी है।

तदापि, यह देखना काफी मजेदार होगा की मुद्रा-विहीन भारतीय अर्थव्यवस्था का आने
वाले समय में कैसा प्रभाव होगा। यह व्यवस्था कर-अधिकारीयों को भारत में होने
वाले तमाम लेन-देन का ब्यौरा वास्तविक समय में देगा। इसके साथ ही ये देखना भी
आवश्यक है की लोग इस व्यवस्था को कैसे अपनाते है और किस तरह से अपने आप को
इसके साथ जोड़ते है। अगर सब कुछ सुनिश्चित प्रक्रिया के तहत रहा तो,
मुद्राविहीन व्यवस्था भारतीय वित्त व्यवस्था को बदल कर रख देगा।

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