Important: Out of 234 jobs under disability quota, 21 per cend were
found to have faked their disability.
This happened in Uttar Pradesh, the state having 75 districts where
genuine disabled candidates are left to beg on the streets. Please
follow the detailed report filed by Mala Dikshit for Jagran today. And
share widely on FB and WhatsAp
http://m.jagran.com/news/national-those-who-get-job-on-fake-disability-certificate-will-face-trouble-in-up-13536712.html



माला दीक्षित, नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में फर्जी तरीके से प्रमाणपत्र
हासिल कर विकलांग कोटे से नौकरी पाने वाले प्राथमिक शिक्षकों की नौकरी पर
तलवार लटक गई है। सुप्रीमकोर्ट ने विकलांग कोटे से नौकरी पाने वालों की
मेडिकल बोर्ड से शारीरिक जांच कराने को हरी झंडी दे दी है।

सुप्रीमकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की याचिका स्वीकार करते इलाहाबाद
हाईकोर्ट की खंडपीठ का आदेश निरस्त कर दिया है। सुप्रीमकोर्ट ने राज्य
सरकार को चार महीने में प्रक्रिया पूरी करने को कहा है।

हाईकोर्ट ने विकलांग कोटे से नौकरी पाने वालों की मेडिकल बोर्ड से दोबारा
जांच कराने का राज्य सरकार का आदेश रद कर दिया था। ये मामला उत्तर प्रदेश
में 2007-2008 में विकलांग कोटे से विशिष्ट बीटीसी करके प्राथमिक शिक्षक
की नौकरी पाने का है। बुधवार को न्यायमूर्ति एमवाई इकबाल व न्यायमूर्ति
अरुण मिश्रा की पीठ ने प्रदेश सरकार की याचिका स्वीकार करते हुए ये फैसला
सुनाया।

कोर्ट ने प्रदेश सरकार के वकील एमआर शमशाद की दलीलें स्वीकार करते हुए
कहा कि हाईकोर्ट ने इस महत्वपूर्ण तथ्य पर ध्यान नहीं दिया कि मेडिकल
बोर्ड ने पहले ही जांच की है और उसमें पाया कि 21 फीसद लोगों ने फर्जी
तरीके से विकलांगता प्रमाणपत्र हासिल किये हैं। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट
ने अपने फैसले में अथारिटीज से कहा है कि वह ऐसे लोगों को सामने बुला कर
जांच करे (फिजिकल वैरीफिकेश) और अगर वह व्यक्ति प्रमाणपत्र के मुताबिक
शारीरिक रूप से अक्षम न पाया जाए तो फिर उसका नये सिरे से मेडिकल टेस्ट
कराया जाए।

हाईकोर्ट ने फैसला देते समय इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि कई तरह की
शारीरिक अक्षमताओं जैसे देखने और सुनने की अक्षमता को महज शारीरिक
निरीक्षण से नहीं जाना ज सकता। इसका पता सिर्फ मेडिकल जांच में ही चल
सकता है।

सुप्रीमकोर्ट ने फैसले में कहा है कि इस मामले में भारतीय विकलांग संघ ने
ज्ञापन देकर फर्जीवाड़े का आरोप लगाया था और गंभीर सवाल उठाए थे। जांच के
बाद पता चला कि 21 फीसद प्रमाणपत्र फर्जी ढंग से प्राप्त किये गये थे।
ऐसी परिस्थिति में हाईकोर्ट की खंडपीठ को मामले में दखल नहीं देना चाहिए
था।

सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश रद करते हुए सरकार से कहा है कि वो
किसी के भी खिलाफ कार्रवाई करने से पहले उसे कारण बताओ नोटिस जारी करेगी
और उसके बाद ही कानून के मुताबिक फैसला किया जायेगा। कोर्ट ने राज्य
सरकार चार महीने में जांच प्रक्रिया पूरी करने को कहा है।


क्या है मामला

बात ये है कि 2007-08 में उत्तर प्रदेश में विकलांग कोटे से विशिष्ट
बीटीसी ट्रेनिंग कर 234 उम्मीदवारों ने सरकारी स्कूलों में प्राथमिक
शिक्षक की नौकरी प्राप्त की। भारतीय विकलांग संघ ने सरकार को ज्ञापन देकर
अपात्रों के फर्जी तरीके से विकलांग कोटे की नौकरी प्राप्त कर लेने का
आरोप लगाया। सरकार ने इस शिकायत पर संज्ञान ले 3 नवंबर 2009 को नये सिरे
से मेडिकल बोर्ड गठित कर उम्मीदवारों की शारीरिक अक्षमता की जांच के आदेश
दिए।

234 उम्मीदवारों की मेडिकल बोर्ड द्वारा की गई जांच में पाया गया कि
विकलांग कोटे का प्रमाणपत्र रखने वाले 21 फीसद लोग वास्तव में विकलांग
नहीं हैं। उम्मीदवार नौकरी तलवार लटकती देख हाईकोर्ट गए। एकलपीठ ने
याचिकाएं खारिज कर दीं और सरकार के आदेश पर मुहर लगाई कहा राज्य सरकार को
ऐसा आदेश जारी करने का अधिकार है।

लेकिन हाईकोर्ट की खंडपीठ ने एकलपीठ का आदेश रद कर दिया और कहा कि सरकार
नये सिरे से मेडिकल बोर्ड गठित कर विकलांगता की जांच नहीं करा सकती। इसके
खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीमकोर्ट आई थी।


-- 
Avinash Shahi
Doctoral student at Centre for Law and Governance JNU

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