शैल चतुर्वेदी एक दिन मामला यों बिगड़ा कि हमारी ही घरवाली से हो गया हमारा झगड़ा स्वभाव से मैं नर्म हूं इसका अर्थ ये नहीं के बेशर्म हूं पत्ते की तरह कांप जाता हूं बोलते-बोलते हांफ जाता हूं इसलिये कम बोलता हूं मजबूर हो जाऊं तभी बोलता हूं हमने कहा-"पत्नी हो तो पत्नी की तरह रहो कोई एहसान नहीं करतीं जो बनाकर खिलाती हो क्या ऐसे ही घर चलाती हो शादी को हो गये दस साल अक्ल नहीं आई सफ़ेद हो गए बाल पड़ौस में देखो अभी बच्ची है मगर तुम से अच्छी है घर कांच सा चमकता है और अपना देख लो देखकर खून छलकता है कब से कह रहा हूं तकिया छोटा है बढ़ा दो दूसरा गिलाफ चढ़ा दो चढ़ाना तो दूर रहा निकाल-निकाल कर रूई आधा कर दिया और रूई की जगह कपड़ा भर दिया
कितनी बार कहा चीज़े संभालकर रखो उस दिन नहीं मिला तो नहीं मिला कितना खोजा और रूमाल कि जगह पैंट से निकल आया मोज़ा वो तो किसी ने शक नहीं किया क्योकि हमने खट से नाक पर रख लिया काम करते-करते टेबल पर पटक दिया- "साहब आपका मोज़ा।" हमने कह दिया हमारा नहीं किसी और का होगा अक़्ल काम कर गई मगर जोड़ी तो बिगड़ गई कुछ तो इज़्ज़त रखो पचास बार कहा मेरी अटैची में अपने कपड़े मत रखो उस दिन कवि सम्मेलन का मिला तार जल्दी-जल्दी में चल दिया अटैची उठाकर खोली कानपुर जाकर देखा तो सिर चकरा गया पजामे की जगह पेटीकोट आ गया तब क्या खाक कविता पढ़ते या तुम्हारा पेटीकोट पहनकर मंच पर मटकते एक माह से लगातार कद्दू बना रही हो वो भी रसेदार ख़ूब जानती हो मुझे नहीं भाता खाना खाया नहीं जाता बोलो तो कहती हो- "बाज़ार में दूसरा साग ही नहीं आता।" कल पड़ौसी का राजू बाहर खड़ा मूली खा रहा था ऐर मेरे मुंह मे पानी आ रहा था कई बार कहा- ज़्यादा न बोलो संभालकर मुंह खोलो अंग्रेज़ी बोलती हो जब भी बाहर जाता हूं बड़ी अदा से कहती हो-"टा....टा" और मुझे लगता है जैसे मार दिया चांटा मैंने कहा मुन्ना को कब्ज़ है ऐनिमा लगवा दो तो डॉक्टर बोलीं-"डैनिमा लगा दो।" वो तो ग़नीमत है कि ड़ॉक्टर होशियार था नीम हकीम होता तो बेड़ा ही पार था वैसे ही घर में जगह नहीं एक पिल्ला उठा लाई पाव भर दूध बढा दिया कुत्ते का दिमाग चढ़ा दिया तरीफ़ करती हो पूंछ की उससे तुलना करती हो हमारी मूंछ की तंग आकर हमने कटवा दी मर्दो की रही सही निशानी भी मिटवा दी वो दिन याद करो जब काढ़ती थीं घूंघट दो बीते का अब फुग्गी बनाती हो फीते का पहले ढ़ाई गज़ में एक बनता था अब दो ब्लाउज़ो के लिये लगता है एक मीटर आधी पीठ खुली रहती है मैं देख नहीं सकता और दुनिया तकती है मायके जाती हो तो आने का नाम नहीं लेतीं लेने पहुंच जाओ तो मां-बाप से किराए के दाम नहीं लेतीं कपड़े बाल-बच्चों के लिये सिलवा कर ले जाती हो तो भाई-भतीजों को दे आती हो दो साड़ियां क्या ले आती हो सारे मोहल्ले को दिखाती हो साड़ी होती है पचास की मगर सौ की बताती हो उल्लू बनाती हो हम समझ जाते हैं तो हमें आंख दिखाती हो हम जो भी जी में आया बक रहे थे और बच्चे खिड़कियो से उलझ रहे थी हमने सोचा- वे भी बर्तन धो रही हैं मुन्ना से पूछा, तो बोला-"सो रही हैं।" हमने पूछा, कब से? तो वो बोला- "आप चिल्ला रहे हैं जब से।" -- With warm regards, BK! "ख़ुदको खोजो ख़ुदा मिलेगा" Mob: 09015797396 Email: binnikumar...@gmail.com Skype: binni06 Face Book: binnikumar...@gmail.com -- Let's be in peace but not into pieces Search for old postings at: http://www.mail-archive.com/accessindia@accessindia.org.in/ To unsubscribe send a message to accessindia-requ...@accessindia.org.in with the subject unsubscribe. To change your subscription to digest mode or make any other changes, please visit the list home page at http://accessindia.org.in/mailman/listinfo/accessindia_accessindia.org.in Disclaimer: 1. Contents of the mails, factual, or otherwise, reflect the thinking of the person sending the mail and AI in no way relates itself to its veracity; 2. AI cannot be held liable for any commission/omission based on the mails sent through this mailing list..