*08 दिसंबर 2019*

*स्वामी नित्यानंद का हिन्दू राष्ट्र*

*-राम पुनियानी*

धर्म कदाचित मानवता की सबसे जटिल परिकल्पना है. सदियों से दार्शनिक और
विद्वतजन धर्म को समझने और उसे परिभाषित करने का प्रयास कर रहे हैं. विभिन्न
विद्वानों ने धर्म के अलग-अलग पक्षों की विवेचना की है. धर्म की शायद सबसे
सटीक समझ कार्ल मार्क्स को थी. उन्होंने लिखा था, ‘‘धर्म का निर्माण मनुष्य
करता है...इस राज्य, इस समाज ने धर्म का निर्माण किया है. धर्म, दमित
व्यक्तियों की आह है. वह इस  हृदयहीन दुनिया का  हृदय है...वह असहाय में साहस
का सृजन करता है. वह आमजनों की अफीम है.’’

मार्क्स की इस विवेचना की अंतिम पंक्ति कि ‘‘धर्म, लोगों की अफीम है’’ अत्यंत
लोकप्रिय है. परंतु यह मार्क्स की विवेचना को उसकी संपूर्णता में प्रस्तुत
नहीं करती. इस विवेचना के मर्म पर आज भी गंभीरता से विचार नहीं किया जा रहा
है. विशेषकर इस पंक्ति पर कि ‘‘धर्म, दमितों की आह है’’. मार्क्स की यह
विवेचना इसलिए महत्वपूर्ण बन गई है क्योंकि आज धर्म, जीवन के हर क्षेत्र में
आक्रामक रूप से घुसपैठ कर रहा है. एक ओर ‘इस्लामिक आतंकवाद’ से मुकाबला करने
के नाम  पर कच्चे तेल के वैश्विक संसाधनों पर कब्जा करने का अभियान चलाया जा
रहा है तो दूसरी ओर, राष्ट्रवाद और धर्म के बीच की विभाजक रेखा को मिटाने की
कोशिशे हो रही हैं. कहीं अंधश्रद्धा को बढ़ावा दिया जा रहा है तो कहीं बाबाओं
की बाढ़ आ गई है.

हर युग में धर्म के अनेक स्वरूप रहे हैं. एक ओर था पुरोहित वर्ग तो दूसरी ओर
थे संत. पुरोहित वर्ग ने हमेशा शासकों का साथ दिया (शासक-पोप, राजा-राजगुरू व
नवाब-शाही इमाम). दूसरी ओर भारत में भक्ति और सूफी संतों ने आमलोगों का साथ
दिया. वे सामाजिक असमानता के खिलाफ  और मानवतावाद के हामी थे. इस समय देश में
बाबाओं की जो बाढ़ आई हुई है उसके भी कई दिलचस्प पहलू हैं. बदली हुई
परिस्थितियों में वे वह भूमिका अदा नहीं कर सकते जो कि पूर्व में पुरोहित वर्ग
करता था. उनका मुख्य आधार धनिक और उच्च मध्यम वर्ग में है. वे सभी आध्यात्म और
नैतिकता की बातें तो करते हैं परंतु उनमें से कई, बल्कि अधिकांश, की
गतिविधियां उनकी कथनी से मेल नहीं खातीं. उनके आचरण और उपदेशों के बीच एक बहुत
गहरी खाई है.

उनमें से कई कानून को ठेंगा दिखाते आए हैं. स्वामी नित्यानंद ने तो एक एकदम
नया काम किया है. उनका असली नाम ए. राजशेखरन है. बाद में उन्होंने भगवा वस्त्र
धारण कर लिए और नित्यानंद स्वामी बन गए. भारत और विदेशों में भी उनके
अनुयायियों की बड़ी संख्या है. अन्य बाबाओं की तरह, उन पर भी बलात्कार और हत्या
जैसे गंभीर आरोप हैं. परंतु जहां उनके अन्य साथियों ने कानून से बचने के
रास्ते ढूढ़े वहीं नित्यानंद ने एक नया ही रास्ता अपनाया. उन्होंने एक नया देश
बना डाला. नित्यानंद ने दक्षिणी अमरीका के पश्चिमी तट के नजदीक इक्वाडोर से एक
द्वीप खरीद लिया. उन्होंने इस द्वीप को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर दिया है. इस
हिन्दू राष्ट्र को कैलाशा का नाम दिया गया है. वह एक ऐसा देश है जहां दुनिया
भर में प्रताड़ित किए जा रहे हिन्दू एक मोटी रकम का भुगतान कर नागरिकता और शरण
पा सकते हैं. ये नागरिक इस देश में अपने धर्म का आचरण करने को स्वतंत्र होंगे.

इस नए देश की वेबसाईट बनाई जा चुकी है उसके राष्ट्रध्वज और राष्ट्रभाषा का
निर्धारण भी हो गया है. इस नए देश के प्रधानमंत्री और केबिनेट की घोषणा भी कर
दी गई है. दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में ईसाई, बौद्ध और इस्लामिक कट्टरतावाद
का प्रभाव है परंतु जिस तरह का काम नित्यानंद ने किया है वह उनके पहले कोई
नहीं कर सका है.

नित्यानंद के पहले आसाराम बापू और गुरमीत रामरहीम ‘इंसान‘ को काफी मुश्किल से
गिरफ्तार किया जा सका था. रामरहीम की गिरफ्तारी के बाद हुई हिंसा में बड़ी
संख्या में लोग मारे गए थे. रामरहीम के साम्राज्य डेरा सच्चा सौदा में चल रही
अवांछनीय गतिविधियों को उजागर करने का प्रयास कर रहे एक पत्रकार छत्रपति
रामचन्द्र की हत्या कर दी गई थी. गुरमीत को हरियाणा सरकार ने करोड़ों रूपये दिए
थे और वहां की केबिनेट के अधिकांश सदस्य उनके भक्त थे. आसाराम के आश्रम में
हाजिरी देने वालों में हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री सहित कई प्रमुख राजनेता
शामिल थे.

स्वामी नित्यानंद को भी अनेक धनी व्यवसायियों का समर्थन प्राप्त है. इनमें से
अधिकांश गुजरात के हैं. जो लोग गुरमीत रामरहीम की गिरफ्तारी का विरोध करते हुए
मारे गए उनमें से कोई भी धनी या प्रमुख व्यक्ति नहीं था. हाल में जब मैं सड़क
के रास्ते पानीपत जा रहा था तब मेरे एक साथी ने मुझे बताया कि इस सड़क से कुछ
ही दूरी पर वह जेल हैं जहां रामरहीम कैद हैं. इस रास्ते से गुजरने वाले उनके
भक्त जेल के सामने कुछ देर ठहरकर अपने आराध्य के प्रति अपना सम्मान व्यक्त
करते हैं. इस सिलसिले में जिस घटना से मुझे सबसे अधिक धक्का पहुंचा था वह थी
साहसी पत्रकार रामचन्द्र की हत्या. रामचन्द्र ने पत्रकारिता के सर्वोच्च धर्म
का निर्वहन किया और वह है अपनी जान की परवाह न करते हुए सत्य को उजागर करना.

इन बाबाओं और साधुओं के महिलाओं की देह से प्रेम की असंख्य कथाएं हैं. इनमें
से कुछ हाथ की सफाई में माहिर होते हैं. इसका उदाहरण थे सत्यसांई बाबा जिनका
सैकड़ों करोड़ का साम्राज्य था. बाबा रामदेव कितनी आसानी से योग गुरू से एक
अरबपति व्यापारी बन गए यह हम सबके सामने है. कुछ महिला बाबा भी हैं जिनमें मां
अमृतानंद माई और राधे मां शामिल हैं. परंतु बाबाओं की दुनिया में लैंगिक
समानता नहीं है और महिलाओं की संख्या पुरूषों से कम है.

बाबाओं के बढ़ते प्रभाव के कारणों को समझने के लिए हमें समाज विज्ञानियों की
मदद लेनी होगी. यहां हमने जिन बाबाओं की चर्चा की है वे राष्ट्रीय स्तर के
हैं. उनके अतिरिक्त देश में क्षेत्रीय, राज्य और जिला स्तर के बाबाओें की भी
बड़ी संख्या है. ये सभी मूलतः व्यवसायी हैं जो सरकार और समाज के धनिक वर्ग की
मदद  से अपना धंधा चला रहे हैं. राजनैतिक दल अपना वोट बैंक खिसकने के डर से
इनसे पंगा नहीं लेते. मजे की बात यह है कि यह सब धर्म और आस्था के नाम पर हो
रहा है. उनकी आलोचना न तो शासकों को भाती है और न समाज के एक बड़े तबके को.
आश्यर्य नहीं कि वे अपनी कथित आध्यात्मिक शक्तियों के नाम पर अपनी गैर-कानूनी
और अनैतिक गतिविधियों पर पर्दा डालने में सफल रहते हैं. (
*अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया) *

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