आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी : एक परिचय

आधुनिक हिन्दी साहित्य में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी एक प्रमुख
निबंधकार,उपन्यासकार ,आलोचक और संपादक के रूप में जाने जाते है। इनका
शास्त्रीय ज्ञान और मौलिक चिंतन अद्वितीय था। हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का
जन्म सन १९०७ में बलिया जिले में आरत दुबे का छपरा में हुआ था। संस्कृत
महाविद्यालय काशी से इन्होने ज्योतिषाचार्य की परीक्षा पास की । १९३१ में ही
आप शान्ति निकेतन में हिन्दी के अध्यापक नियुक्त हो गए। वह रह कर आचार्य
क्षितिमोहन सेन और गुरुदेव टैगोर के संपर्क में इन्होने बहुत कुछ सिखा। १९५०
में इन्हे काशी विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग का अध्यक्ष बनाया गया। दस बर्ष
तक काशी में काम करने के बाद १९६० में पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ में हिन्दी
विभाग के अध्यक्ष नियुक्त हुए। यहाँ से अवकाश प्राप्त होने के बाद ये भारतीय
सरकार की हिन्दी विषयक अनेक योजनाओं से जुड़े रहे। लखनऊ विश्वविद्यालय से
इन्हे डी.लिट .की उपाधि प्रदान की गई। भारत सरकार ने द्विवेदी जी को पद्म भूषण
की उपाधि से अलंकृत किया।
आचार्य जी का व्यक्तित्व अत्यन्त प्रभावशाली था। पूर्वी उत्तर प्रदेश में उनके
व्यक्तित्व के प्रस्फुटित होने को प्रयाप्त सुबिधा नही मिल पाई।
बोलपुर(सिंहभूमि) की मुक्त हवा ने उनकी कल्पनशीलता ,लालित्यबोध और
सौन्दर्य-प्रेम को जागृत किया। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी यही पर सूर और
कबीर पर पुस्तके लिखी । द्विवेदी जी का सबसे बड़ा गुण था उनका मुक्त ठहाका
,निर्मल परिहास भाव ,शुद्ध विनोद । इनके साहित्य में ह्रदय की सरलता ,प्राचीन
साहित्य एवं संस्कृत का ज्ञान-वैभव ,विचारो की मौलिकता एवं शैली की रोचकता का
सफल समन्वय दृष्टिगोचर होता है। सरलता के साथ व्यंग -विनोदप्रियता इनके
साहित्य की निजी विशेषता है। गंभीर इतिहास के अध्ययन के कारण इनका दृष्टिकोण
पर्याप्त व्यापक और उदार है और उस पर रवीन्द्र के मानवतावाद की गहन छाप है।
इन्होने साहित्य ,समाज ,संस्कृति और ज्योतिष आदि अनेक विषयो पर लिखा है। पाठक
के साथ आत्मीयता स्थापित करने में द्विवेदी जी सिद्धहस्त है। आचार्य हजारी
प्रसाद द्विवेदी के निबंधो में भाषा और शैली दोनों विषयानुरूप है। आधुनिक
हिन्दी निबंध साहित्य में इनका स्थान सर्वोपरि है।
आचार्य द्विवेदी जी का निधन १९ मई ,१९७९ को हुआ। उनके निधन से हिन्दी भाषा ही
नही समूचा राष्ट्र निर्धन हुआ है। भारतीय मनीषा और संस्कृति के वह आदर्श
प्रतीक थे। उनके धर्म ,दर्शन और साहित्य के ज्ञान में उनका पांडित्य झलकता था।
संभवतः उनका जन्म हिन्दी को गौरवान्वित करने के लिए ही हुआ था।

रचना -कर्म :
निबंध संग्रह : अशोक के फूल ,विचार और वितर्क ,कल्पलता,कुटुज, आलोक पर्व ।
उपन्यास : बाणभट्ट की आत्मकथा ,पुनर्वा अनामदास का पोथा,चारु-चंद्रलेख ।
आलोचना -साहित्य : सूर-साहित्य,कबीर ,हिन्दी साहित्य की भूमिका,कालिदास की
लालित्य योजना, साहित्य सहचर,मध्यकालीन धर्म साधना ,सहज साधना ,मध्यकालीन बोध
का स्वरुप ,हिन्दी साहित्य :उद्भव और विकास ,हिन्दी साहित्य का आदि

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