This is the  story of Harender Pal Singh who is a blind school teacher
in Sirsa  and has written 160 Punjabi songs. He said: "I have written
all songs in Braille which enabled me to express my imagination on
paper then became dam hits"!
Kuch gaano ki jhalkiyaan below
हरिंद्रपाल के कुछ मुख्य गीतों की पंक्तियां
1. मैणू कुख च ना मार माये मेरिए, मैणू पैदा हो लैण दे...
2. हो चली मैं विदा बाबुला, छड्ड के तेरा बेहड़ा....
3. किणी वार केहा सी, जिद्द ना कर, ऐवें ना ठंडे होंके भर...
4. दूर ना होवीं, तूं मैथों सज्जना, कड्ड लवीं पाणवे मेरी जान वे...
5. साड्डा की कसूर ए, कसूर दिल दा, जिहड़ा सोनिये णी तेरे उत्ते आया...
6. अखियां दा सावन पाऊंदा वैन, रौंदे नैण, तूं परदेस वे...
7. धी ही मां बनदी, पैण बने, परजाई ओ
Read his big  story from the small town in Hariyana.
http://chandigarh.amarujala.com/feature/city-news-chd/salute-to-brave-boy-blind-but-has-written-160-songs-hindi-news/page-5/



हरभजन मान का फैन है हरिंद्र पाल
ये नौजवान किसी के लिए भी मिसाल से कम नहीं है। इसके जज्बे और हौंसले की
कहानी पढ़ेंगे तो सलाम करेंगे। यह आंखों ने देख नहीं सकता, लेकिन 160
पंजाबी गाने लिख चुका है। हरियाणा में सिरसा जिले के शहर डबवाली के एक
निजी विद्यालय में बच्चों को संगीत की शिक्षा दे रहा है यह युवक है
हरिंद्र पाल सिंह।

हरिंद्र पंजाबी लोक गायक हरभजन मान के फैन हैं। उनकी तरह सुनना तथा गाना
पसंद करते हैं। ग्यारहवीं की पढ़ाई के दौरान गाया गीत दिल कर साड्डे नाल
सांझा कुड़िए, बन हीर ते बणु मैं तेरा रांझा कुड़िए...रिकॉर्ड करवाकर
वाहवाही लूट चुके हैं।

अपने गीत हरियाली साड़ी पहने मां, गीत तुम्हारे गाएं हम...वंदे मातरम से
पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला भी गूंजा चुके हैं। वे ढोलक, हरमोनियम,
तबला, सितार बजा लेते हैं। यह सब करते हुए देखने वाला हरिंद्र को देखता
ही रह जाता है।

ब्रेल लिपि में लिखे हैं सभी गाने
जेहन में सहज ही यह सवाल पैदा होता है कि यंत्र बजा सकते हैं, आखिर बिन
आंखों के वे गीत कैसे लिखते होंगे? इसका जवाब हरिंद्र बड़ी ही सरलता से
देते हैं।

उनका कहना है कि मैं हमेशा अपडेट रहता हूं। सुबह-सुबह जैसे ही घर में
अखबार आता है, मेरे पिता गुरदीप सिंह मुझे पढ़कर सुनाते हैं। ऐसे में
समाज के वर्तमान हालातों का अच्छे से ज्ञात हो जाता है।

इसके अतिरिक्त टीवी पर समाचार सुनता हूं। काल्पनिक दृश्य खुद ब खुद
मानसिक पटल पर उभर आते हैं। जो गीत लिखने के लिए प्रेरित करते हैं।

हमें भी समाज में बने रहने के लिए ब्रेल लिपि सिखाई जाती है। जिसकी मदद
से हम मन के भावों को कागज पर बयां करते हैं। उनके लिखे सभी 160 गीत
ब्रेल लिपि में हैं।

स्कूल में बतौर म्यूजिक टीचर कार्यरत हैं हरिंद्र
संगीत के बारे में भी हरिंद्र खास जानकारी रखते हैं। उनके शब्दों में गीत
सामाजिक ताने-बाने से जुड़ा होना चाहिए। अगर गीत को हिट करना है तो
श्रृंगार रस के साथ-साथ गीत की शब्दावली सरल होनी चाहिए। किसी हद तक
म्यूजिक भी श्रोताओं को अपनी ओर खींचता है।

खुद के पैरों पर खड़े होने के लिए आंखों की जरूरत नहीं होती, इसके लिए
चाहिए बस हिम्मत और साहस। इस बात को भी हरिंद्र ने बड़े ही सलीके से पेश
किया है।

27 वर्ष का यह नौजवान डबवाली के शहीद अशोक वढ़ेरा सरस्वती विद्या मंदिर
में बतौर म्यूजिक टीचर कार्यरत है। यह कार्यभार वर्ष 2013 में संभाला था।
दो सालों में सैकड़ों बच्चों को म्यूजिक का प्रशिक्षण दे चुका है। यही
नहीं हरिंद्र के दिशा-निर्देश में विद्यालय के बच्चे कई प्रतियोगिताओं
में धमाल मचा चुके हैं।

ऐसी रही हरिंद्र की शिक्षा दीक्षा
27 वर्षीय हरिंद्रपाल सिंह के पिता गुरदीप सिंह रिटायर्ड अध्यापक हैं।
उनकी माता अमृतपाल कौर एक निजी स्कूल में अध्यापिका हैं। छोटा भाई भी
अध्यापक है। हरिंद्र ने श्रीमुक्तसर साहिब के गांव वडिंगखेड़ा से पांचवीं
पास की।

लुधियाना के ब्लाईंड स्कूल में दसवीं करने के बाद डीएवी डबवाली में
एडमिशन लिया। यहां बारहवीं करने के बाद राजेंद्रा कॉलेज, बठिंडा में
ग्रेजुएशन कंपलीट की। पटियाला स्थित संत कबीर कॉलेज में बीएड की।

पटियाला स्थित पंजाबी विश्वविद्यालय में एमए म्यूजिक की डिग्री प्राप्त
की। बचपन से ही गुनगुनाने के शौक ने एमए (म्यूजिक) करवाई। खुद के पैरों
पर खड़ा होने के हौसले ने एमए करते ही एक निजी स्कूल में जॉब दिलाई।

-- 
Avinash Shahi
Doctoral student at Centre for Law and Governance JNU


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