Thank you sir

On 17 Aug 2017 6:22 pm, "Shreenivas Naik" <
shreenivasnaik.hindi.vo...@gmail.com> wrote:

>
> अंतरिक्ष की दुनियाँ में भारत के बढ़ते कदम
> भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने पिछले दिनों अंतरिक्ष के क्षेत्र
> में एक नया मुकाम हासिल करते हुए अपने100वें मिशन का सफल परीक्षण किया. यह
> अंतरिक्ष में भारत के बढ.ते कदम का सबूत है कि आज वह काफी हद तक अपने बूते
> विकास के इन रास्तों पर कदम बढ.ा रहा है. एक वक्त ऐसा भी था, जब अंतरिक्ष में
> अमेरिका और रूस के बीच ही होड़ बनी रहती थी, जिसे स्पेस रेस के नाम से जाना
> गया. लेकिन, अब दुनिया स्पेस रेस के दौर से काफी आगे निकल चुकी है और चीन और
> भारत जैसे देश भी अंतरिक्ष में अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहे हैं. *अंतरिक्ष
> में भारत की सफलता को बतलाता शशांक द्विवेदी का प्रभातखबर में आज का विशेष लेख*
>
> <http://1.bp.blogspot.com/-Eoz40vIISto/UHVJzRqgHMI/AAAAAAAAGrY/epuNaxAd-Kc/s1600/10oct12-prabhatkhabar.jpg>
> प्रभातखबर
> पिछले दिनों इसरो द्वारा अंतरिक्ष में अपने सौवें अंतरिक्ष मिशन की सफलता के
> बाद देश के अब तक के सबसे भारी संचार उपग्रह जीसेट-10को दक्षिण अमेरिका के
> फ्रेंच गुयाना स्थित कौरो लॉन्च पैड से एरियन-5रॉकेट के जरिए सफलतापूर्वक
> प्रक्षेपित किया गया. यह उपग्रह दूरसंचार,डायरेक्ट-टू-होम प्रसारण और नागरिक
> उड्डयन की जरूरतें पूरी करेगा. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा
> निर्मित 3,400 किलोग्राम वजनी जीसेट-10 अब तक का सबसे भारी संचार उपग्रह है.
> यह नवंबर से काम करने लगेगा और यह 15 वर्ष तक काम करता रहेगा.
>
> इसे भारत के 101वें अंतरिक्ष अभियान ‘अच्छा स्वास्थ्य’ के तहत प्रक्षेपित
> किया गया. जीसेट-10 में 30 संचार अभिग्राही हैं. 12 कू-बैंड में, 12 सी-बैंड
> में और छह अभिग्राही विस्तारित सी-बैंड में लगे हैं. इसके अलावा इसमें एक
> नकारात्मक अंतरिक्ष उपकरण गगन लगाया गया है, जो परिष्कृत शुद्धता के जीपीएस
> संकेत मुहैया करायेगा. भारतीय हवाई अड्डा प्राधिकरण इस उपकरण का उपयोग नागरिक
> उड्डयन की जरूरतें पूरी करने के लिए कर सकेगा. जीपीएस एडेड जियो ऑगमेंटेड
> नेविगेशन को संक्षेप में गगन कहा जाता है. मई2011 में जीसेट-8 के प्रक्षेपण के
> बाद यह दूसरा उपग्रह है,जिसे अंतरिक्ष उपकरण गगन के साथ इनसेट या जीसेट उपग्रह
> समूह में शामिल किया गया है.
>
> *अंतरिक्ष में बढ़ते कदम*
> 19 अप्रैल, 1975 में स्वदेश निर्मित उपग्रह आर्यभट्ट के प्रक्षेपण के साथ
> अपने अंतरिक्ष सफर की शुरुआत करने वाले इसरो की यह सफलता भारत के अंतरिक्ष में
> बढ.ते वर्चस्व की तरफ इशारा करती है. 22 अक्तूबर, 2008 मून मिशन की सफलता के
> बाद इसरो का लोहा पूरी दुनिया मान चुकी है. चांद पर पानी की खोज का श्रेय भी
> चंद्रयान-1 को ही मिला. भविष्य में इसरो उन सभी ताकतों को और भी टक्कर देने जा
> रहा है, जो साधनों की बहुलता के चलते प्रगति कर रहे हैं, लेकिन भारत के पास
> प्रतिभाओं की बहुलता है.
>
> *चुनौतियां भी कम नहीं*
> अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में हम लगातार प्रगति कर रहे हैं,लेकिन अभी भी
> हम पूरी तरह से आत्मनिर्भर नहीं हो पाये हैं. अभी भी हमें विदेशों से
> ट्रांसपोंडर लीज पर लेने पड़ रहे हैं. इसरो को पीएसएलवी दूरसंवेदी उपग्रहों की
> प्रक्षेपण में दक्षता है, लेकिन लेकिन संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण के मामले
> में हम अभी आत्मनिर्भर नहीं हो पाये हैं. इसी वजह से हमें जीसेट-10का
> प्रक्षेपण विदेशी रॉकेट से कराना पड़ रहा है. क्रायोजेनिक तकनीकी के
> परिप्रेक्ष्य में पूर्ण सफलता न मिलने के कारण भारत इस मामलें में आत्मनिर्भर
> नहीं हो पाया है, जबकि प्रयोगशाला स्तर पर क्रायोजेनिक इंजन का सफलतापूर्वक
> परीक्षण किया जा चुका है. लेकिन स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन की सहायता से लॉन्च
> किये गये प्रक्षेपण यान जीएसएलवी की असफलता के बाद इस पर सवालिया निशान लगा
> हुआ है. स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के विकास में बहुत देरी हो रही है.
> वर्ष 2010 में जीएसएलवी के दो अभियान विफल हो गये थे,अंतरिक्ष में लंबे समय तक
> टिकने के लिए हमें इस दिशा में अभी बहुत काम करना है. क्योंकि अंतरिक्ष अब
> बहुत महत्वपूर्ण हो गया है और हमारा निकटतम प्रतिद्वंद्वी चीन कई मामलों में
> हमसे बहुत आगे चल रहा है. चीनी रॉकेट नौ टन का पेलोड ले जा सकते हैं, लेकिन
> भारतीय रॉकेट अभी 2.5 टन से ज्यादा भार नहीं ले जा सकते. इसलिए इस दिशा में
> लगातार काम करने की जरूरत है.
>
> *भविष्य की योजनाओं पर है नजर*
> इसरो के अध्यक्ष के राधाकृष्णन के अनुसार भारत की अंतरिक्ष योजना भविष्य में
> मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन भेजने की है. लेकिन इस तरह के अभियान की सफलता
> सुनिश्‍चित करने के लिए अभी बहुत सारे परीक्षण किये जाने हैं. भारत
> वर्ष 2016में नासा के चंद्र मिशन का हिस्सा बन सकता है और इसरो चंद्रमा के आगे
> के अध्ययन के लिए अमेरिकी जेट प्रणोदन प्रयोगशाला से साझेदारी भी कर सकता है.
> देश में आगामी चंद्र मिशन चंद्रयान-2 के संबंध में कार्य प्रगति पर है.
> चंद्रयान-2 के संभवत: 2014 में प्रक्षेपण की संभावना है. इसरो और रूसी
> अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कॉसमॉस के चंद्रमा के लिए संयुक्त मानव रहित इसरो अभियान
> चंद्रयान-2 मिशन रूस के नीतिगत निर्णय की प्रतीक्षा में अटक गया है. चीन के
> साथ साझा मिशन विफल हो जाने के मद्देनजर रूस अपने अंतरग्रही मिशनों की समीक्षा
> कर रहा है. इस पर सरकार को जल्दी फैसले के लिए रूस पर दबाव बनाना प.डेगा.
> चंद्रयान-2 मिशन 2014 में प्रस्तावित है और इसे भू-समकालिक उपग्रह प्रक्षेपण
> यान (जीएसएलवी) एम के 2 से प्रक्षेपित किया जायेगा. वर्ष 1969 में प्रसिद्ध
> वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के निर्देशन में राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन
> का गठन हुआ था. तब से अब तक चांद पर अंतरिक्ष यान भेजने की परिकल्पना तो साकार
> हुई. अब हम चांद पर ही नहीं, बल्कि मंगल पर भी पहुंचने का सपना देखने लगे हैं.
> इन प्रक्षेपित उपग्रहों से मिलने वाली सूचनाओं के आधार पर हम अब संचार, मौसम
> संबंधित जानकारी, शिक्षा के क्षेत्र में, चिकित्सा के क्षेत्र में टेली
> मेडिसिन, आपदा प्रबंधन एवं कृषि के क्षेत्र में फसल अनुमान, भूमिगत जल के
> स्रोतों की खोज, संभावित मत्स्य क्षेत्र की खोज के साथ पर्यावरण पर निगाह रख
> रहे हंै.
>
> *कम संसाधनों में ऐतिहासिक सफलता का लक्ष्य*कम संसाधनों और कम बजट के बावजूद
> भारत आज अंतरिक्ष में कीर्तिमान स्थापित करने में लगा हुआ है. भारतीय
> प्रक्षेपण रॉकेटों की विकास लागत ऐसे ही विदेशी प्रक्षेपण रॉकेटों की विकास
> लागत के एक तिहाई भर है. इनसेट प्रणाली की क्षमता को जीसैट द्वारा मजबूत बनाया
> जा रहा है, जिससे दूरस्थ शिक्षा, दूरस्थ चिकित्सा ही नहीं, बल्कि ग्राम संसाधन
> केंद्र को उत्रत बनाया जा सके. पिछले दिनों ही इसरो ने अंतरिक्ष के क्षेत्र
> में इतिहास रचते हुए अपने सौवें अंतरिक्ष मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया और
> पीएसएलवी सी-21 के माध्यम से फ्रांसीसी एसपीओटी-6 को और जापान के माइक्रो
> उपग्रह प्रोइटेरेस को उनकी कक्षा में स्थापित कर दिया. पोलर सैटेलाइट लॉन्च
> ह्वीकल (पीएसएलवी) फ्रांसीसी उपग्रह को लेकर अपनी 22वीं उड़ान पर रवाना हुआ
> था. कुल 712किलोग्राम वजन वाला यह फ्रांसीसी उपग्रह भारत द्वारा किसी विदेशी
> ग्राहक के लिए प्रक्षेपित सर्वाधिक वजन वाला उपग्रह है. इसरो की यह सफलता भारत
> के अंतरिक्ष में बढ.ते वर्चस्व की तरफ इशारा करती है. इसरो ने अब
> तक 62 उपग्रह, एक स्पेस रिकवरी मॉड्यूल और 37 रॉकेटों का प्रक्षेपण कर लिया
> है. इससे दूरसंवेदी उपग्रहों के निर्माण व संचालन में वाणिज्यिक रूप से भी
> फायदा पहुंच रहा है. भविष्य में अंतरिक्ष में प्रतिस्पर्धा बढे.गी. भारत के
> पास कुछ बढ.त पहले से है, इसमें और प्रगति करके इसका ब.डे पैमाने पर वाणिज्यिक
> उपयोग संभव है. यदि इसी प्रकार भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता
> रहा तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे यान अंतरिक्ष यात्रियों को चांद, मंगल या
> अन्य ग्रहों की सैर करा सकेंगे. इसरो के हालिया मिशन की सफलताएं देश की
> अंतरिक्ष क्षमताओं के लिए मील का पत्थर हैं. लेकिन इसरो को जीएसएलवी से
> संबंधित अपनी कुछ असफलताओं से सबक लेते हुए जल्द से जल्द उन्हें दूर करना
> होगा, तभी भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक महाशक्ति के रूप में उभरेगा.
> *मंजिल अभी काफी दूर!*
> अंतरिक्ष में बादशाहत की जंग को देखें तो भारत ने भी पिछले कुछ वर्षों में
> महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल की हैं. 22 अक्तूबर, 2008 को चंद्रयान-1 के सफल
> प्रक्षेपण के बाद अब चंद्रयान-2को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी हो रही है. यह
> अंतरिक्ष में भारत के बढ.ते कदम को बतलाता है. लेकिन, इसके बावजूद इस क्षेत्र
> में भारत चीन से मुकाबला करने की स्थिति में नहीं है. हां अगर इस आपसी रेस से
> अलग अंतरिक्ष में विकासशील देशों के बढ.ते दखल के हिसाब से देखें तो चीन और
> भारत की उपलब्धियां इस बात का सबूत हैं, कि अंतरिक्ष विज्ञान में अमेरिका और
> रूस के प्रभुत्व वाले दिन खत्म हो गये हैं. वर्ष1992 में भारत जब आर्थिक और
> राजनीतिक चुनौतियों का सामना कर रहा था, उस वक्त चीन में प्रोजेक्ट-921 की
> शुरुआत हुई. यह मिशन इनसान को अंतरिक्ष में ले जाने से संबंधित था. 2003 तक
> इसके तहत पांच मिशन अंतरिक्ष में भेजे जा चुके थे. अभी तक नौ चीनी नागरिक
> अंतरिक्ष की सैर कर चुके हैं. इसकी तुलना में भारत अभी दोबारा इस्तेमाल में
> आने वाले स्पेस ह्वीकल तकनीक के विकास में ही लगा है. इसरो
> जीएसएलवी-मार्क-3 विकसित कर रहा है. जबकि भारत में इस तरह के प्रोग्राम का
> कहीं कोई जिक्र नहीं है.
> *भारत और चीन में प्रतिद्वंद्विता*
> भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की योजना वर्ष2025 तक मानवयुक्त
> अंतरिक्ष यान भेजने की है. इसकी योजना सुरक्षा के लिए उपग्रह आधारित
> कम्युनिकेशन और नेविगेशन सिस्टम इस्तेमाल करने की भी है. लेकिन, भारत का
> प्रतिद्वंद्वी पड़ोसी चीन का अंतरिक्ष के उपयोग को लेकर भारत से थोड़ा अलग
> एजेंडा है. इसरो के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, भारत के पास 21 उपग्रह हैं.
> इनमें से 10 संचार और4 तसवीर लेने की क्षमता से लैस निगरानी करने वाले उपग्रह
> हैं. बाकी सात भू-पर्यवेक्षण उपग्रह (अर्थ ऑब्र्जवेशन सैटेलाइट) हैं. इनका
> इस्तेमाल दोहरे उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है. ये रक्षा उद्देश्यों के
> लिए भी प्रयोग में आ सकते हैं. चीन से यदि प्रत्यक्ष तुलना करें तो भारतीय
> अंतरिक्ष कार्यक्रम अपनी सफलताओं के बावूद चीन से पीछे नजर आता है, जबकि हकीकत
> यह है कि दोनों देशों ने एक साथ 1970 के दशक में अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम
> गंभीरता से शुरू किया था. खासकर मानवयुक्त मिशन को लेकर दोनों देशों के बीच
> फासला काफी बड़ा नजर आता है. भारत के लिए ऐसे किसी मिशन की संभावना अगले दशक
> में ही है, जबकि चीन ने 2003 में ही मानव को अंतरिक्ष में भेज दिया था.
> *अमेरिका और रूस का खत्म होता एकाधिकार*
> अंतरिक्ष में वर्चस्व कायम करने की होड़ 1950 के दशक में दो महाशक्तियों
> अमेरिका और सोवियत संघ के बीच देखने को मिली थी. इसे स्पेस रेस के नाम से जाना
> गया. सोवियत संघ ने4 अक्तूबर, 1957 को पहला कृत्रिम उपग्रह स्पुतनिक-1 पृथ्वी
> की कक्षा में प्रक्षेपित किया था. इसके बाद अमेरिकी अपोलो-11 अंतरिक्ष यान को
> चंद्रमा पर 20 जुलाई, 1969 को उतारा गया था. हालांकि, दोनों देशों को इस होड़
> की कीमत भी चुकानी पड़ी. 1960 में सोवियत संघ की नेडेलीन नामक दुर्घटना स्पेस
> रेस की सबसे भयावह त्रासदी थी. दरअसल, 24अक्तूबर, 1960 को मार्शल मित्रोफन
> नेडेलीन ने प्रायोगिक आर-16 रॉकेट को बंद और नियंत्रित करने की गलत प्रक्रिया
> निर्देशित की. नतीजतन, रॉकेट में विस्फोट हो गया, जिससे लगभग 150 सोवियत
> सैनिकों और तकनीकी कर्मचारियों की मौत हो गयी. उधर, 27 जनवरी 1967 को अमेरिकी
> यान अपोलो-1 ते ग्राउंड टेस्ट के दौरान केबिन में आग लग गयी और घुटन के कारण
> तीन क्रू सदस्यों की मौत हो गयी. इसके अलावा दोनों देशों को स्पेस रेस की बड़ी
> आर्थिक कीमत भी चुकानी पड़ी है. अंतरिक्ष में अब इन दोनों देशों का वर्चस्व
> खत्म हो रहा है और अन्य यूरोपीय देशों के अलावा चीन और भारत जैसे देश अंतरिक्ष
> में नया मुकाम हासिल कर रहे हैं.
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